हरतालिका तीज व्रत कथा: पार्वती की तपस्या और शिव का प्रेम

हरतालिका तीज व्रत भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है, जो महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। इस व्रत की पौराणिक कथा भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच अटूट प्रेम और समर्पण की कहानी पर आधारित है। इस लेख में हम हरतालिका तीज के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को विस्तार से समझेंगे।

“हरतालिका तीज: शिव-पार्वती की प्रेम कथा और व्रत की महिमा”

हरतालिका तीज की पौराणिक कथा

हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। उनकी यह तपस्या इतनी कठोर थी कि उन्होंने निराहार और निर्जला रहकर कई वर्षों तक भगवान शिव का ध्यान किया। पार्वती जी के पिता, हिमालय, ने उनकी शादी भगवान विष्णु से तय कर दी थी। जब यह बात पार्वती जी को पता चली, तो उन्होंने अपनी सखियों से मदद मांगी। उनकी सखियों ने उन्हें उनके पिता के घर से हरण कर जंगल में ले जाकर छुपा दिया। वहाँ देवी पार्वती ने भगवान शिव की आराधना जारी रखी।

Read More 14 Ganesh Chaturthi शुभेच्छा Quotes 2024 for Kids in Marathi and Hindi | गणपती बाप्पा मोरया!

पार्वती जी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और पार्वती के मिलन का प्रतीक है, जिसमें पार्वती जी के अटूट विश्वास और प्रेम की जीत हुई। इस दिन महिलाएं शिव-पार्वती की पूजा कर अपने पति के दीर्घायु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक सुख की कामना करती हैं।

हरतालिका तीज का इतिहास

हरतालिका तीज का व्रत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है और इसका मुख्य उद्देश्य पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति करना है। इस व्रत को विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों में मनाया जाता है, जहाँ महिलाएं बड़ी श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को रखती हैं। इसके साथ ही यह त्योहार भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं में गहरे रूप से रचा-बसा है।

“हर” का अर्थ होता है “हरण” और “तालिका” का अर्थ होता है “सखी”। यह पर्व देवी पार्वती के सखियों द्वारा उनका हरण कर भगवान शिव से मिलवाने की कथा से जुड़ा है। इस व्रत में पति-पत्नी के संबंधों का महत्व और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

Read More Guru Granth Sahib Parkash Utsav: Celebrating the Eternal Living Guru

हरतालिका तीज क्यों मनाते हैं?

हरतालिका तीज व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। वे अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए इस व्रत को रखती हैं। इसके अलावा, यह व्रत कुंवारी लड़कियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वे इस व्रत को मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य स्त्रियों के जीवन में प्रेम, समर्पण और सौभाग्य की प्राप्ति है।

हरतालिका तीज की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी सखियों ने उनका हरण किया ताकि वे विष्णु जी से होने वाली शादी से बच सकें। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की, जिससे शिव जी प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। यह कथा प्रेम, समर्पण और त्याग का प्रतीक है।

किन राज्यों में हरतालिका तीज मनाई जाती है?

हरतालिका तीज मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में मनाई जाती है, जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड। इसके अलावा, नेपाल में भी यह व्रत विशेष रूप से मनाया जाता है। इन राज्यों में महिलाएं बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ इस व्रत को रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।

हरतालिका तीज व्रत में क्या खाएं?

यह व्रत निर्जला और निराहार रखा जाता है, लेकिन कुछ महिलाएं फलाहार करती हैं। व्रत के दौरान फल, मेवे, साबूदाना की खिचड़ी, और कुट्टू के आटे से बने पकवान खाए जा सकते हैं। इस दिन अनाज और नमक का सेवन वर्जित होता है। यह व्रत कठोर होता है, लेकिन इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है।

हरतालिका तीज व्रत क्यों रखा जाता है?

इस व्रत को रखने का मुख्य उद्देश्य पति की लंबी आयु, सुखी वैवाहिक जीवन और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति करना है। इसके साथ ही यह व्रत स्त्रियों के जीवन में प्रेम, त्याग और समर्पण की भावना को भी दर्शाता है। शिव-पार्वती का मिलन इस व्रत का प्रमुख कारण है, जो प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।

हरतालिका तीज की पूजा विधि

हरतालिका तीज के दिन महिलाएं शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा की विधि में मिट्टी या बालू से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्तियाँ बनाकर उनका पूजन किया जाता है। महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पूजा करती हैं और व्रत कथा सुनती हैं। पूजा के अंत में आरती की जाती है और भगवान से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

क्या हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण किया जा सकता है?

परंपरागत रूप से यह व्रत निर्जला रखा जाता है, जिसमें जल भी नहीं ग्रहण किया जाता है। हालांकि, यह पूरी तरह से व्यक्तिगत निर्णय पर निर्भर करता है। कुछ महिलाएं स्वास्थ्य कारणों से फलाहार और जल का सेवन करती हैं, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य भगवान शिव और पार्वती के प्रति अटूट श्रद्धा और समर्पण है।

हरतालिका तीज पर महिलाएं किस प्रकार सजती हैं?

इस पर्व पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जो सुहाग और सौभाग्य का प्रतीक है। वे विशेष रूप से लाल या हरे रंग की साड़ी पहनती हैं, जो शुभ मानी जाती है। इसके अलावा, चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी और आभूषणों से सजी-धजी महिलाएं इस दिन विशेष रूप से पूजन करती हैं। श्रृंगार के माध्यम से वे अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।


हरतालिका तीज भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय और धार्मिक पर्व है, जो स्त्रियों के जीवन में प्रेम, समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक है।